ग़म कि दुनीया रहे आबाद "शकिल"
मुझ नसींबमे कोई जागीर तो है !
किंवा
मै "शकिल" उनका होकर भी ना पा सका हूं उनको
मेरी तरहा दुनीयामे कोई जीत कर भी न हारे !
शकील कधीतरी झपाटुन टाकतो.
मग कधीतरी लताचे काळीज पिळवटुन टाकणारे स्वर आठवतात
"मुझे ये ग़म है कि मेरी जुबां ने कुछ न कहा "
तर कधी सैगल "गम दिये मुस्तकील कितना नाजुक है दिल ये ना जाना ,हाय हाय ये जालीम जमाना "
2 comments:
Thanks for coming by to check out my blog!
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Gives me a chance to connnect to my marathi roots!
You are welcome.
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