Saturday, December 13, 2008

ग़म -मौजे़ ग़म से किई ना हो मायुस जींदगी डुबकर उभरती है

ग़म कि दुनीया रहे आबाद "शकिल"
मुझ नसींबमे कोई जागीर तो है !

किंवा

मै "शकिल" उनका होकर भी ना पा सका हूं उनको
मेरी तरहा दुनीयामे कोई जीत कर भी न हारे !

शकील कधीतरी झपाटुन टाकतो.

मग कधीतरी लताचे काळीज पिळवटुन टाकणारे स्वर आठवतात

"मुझे ये ग़म है कि मेरी जुबां ने कुछ न कहा "

तर कधी सैगल "गम दिये मुस्तकील कितना नाजुक है दिल ये ना जाना ,हाय हाय ये जालीम जमाना "

2 comments:

Another Kiran In NYC said...

Thanks for coming by to check out my blog!

I am going to be back on yours regularly.

Gives me a chance to connnect to my marathi roots!

HAREKRISHNAJI said...

You are welcome.