UNKE DUSHMAN HAI BAHUT AADMI AACHA HOGA
अब भी एक उम्र पे जीने का न अंदाज आया । ज़िंदगी छोड दे पीछा मेरा, मै बाज़ आया ।।
Friday, December 31, 2010
वृक्षगान
आधीच डॉ.शरदिनी डहाणूकरांनी लिहिलेली पुस्तक वाचणे , एक बहार असतं, त्यात ऐन बसंतात फुललेल्या पांगाऱ्यासमान "वृक्षगान " हाती लागलयं.
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