खुशी ने मुझको ठुकराया है दर्दो ग़म ने पाला है
गुलों ने बे रु़खी की है तो कांटो ने संम्हाला है
मुहब्बत में ख़याले साहिलो मंजिल है नादानी
जो इन राहों मे लुट जाए वोही तक्दीर वाला है
चरा़गा कर के दिल बहला रहे हो क्या जहां वालो
अंधेरा लाख रौशन हो उजाला फिर उजाला है
किनारों से मुझे ऐ ना़खुदा तू दूर ही रखना
वहां लेकर चलो तू़फां जहां से उठने वाला है
नशेमन ही के लुट जाने का ग़म होता तो क्या ग़म था
यहां तो बेचने वालों ने गुल्शन बेच डाला है
-शाइर - "अली" जलीली.
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ugich konitari यांच्या कडुन
सूरज चाँद से ख़फा है , गम में पूरे डूबे है तारे ......
सब को इकठ्ठा करके ,, मेरा दिल पुकारे, आ रे , आरे आरे -
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सुरवात -
वो हमसे ख़फा है, हम उनसे ख़फा़ है
4 comments:
किस किस को बतायॆंगे जुदाईका सबब हम
तू मुझसे खफ़ा हॆ तो जमानेके लिये आ
रंजीश ही सही दिलही दुखानेके लिये आ
आ फ़िर से मुझे छोड के जाने के लिये आ
अहमद फ़राज
वा क्या बात है !
आ फ़िर से मुझे छोड के जाने के लिये आ
वा.
माझं वाचन किती तोकडे आहे हे आता जाणवायला लागले आहे
ख़फ़ा है जिंदगी कब
जब तुही कफ़ा है खुदसे
साहील भी क्या करे
जब तुफ़ान उठा है
खुद की होई गोद में..
आब दिखता है साहील
उचीलेहोरो सी लपेटा हुवा
चिख़ता चिल्लाता हुवा...
...स्नेहा
i knw yaalaa gazal mhanat naahit tarihii...
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