जिंन्दगी यूं भी गुज़र ही जाती
क्यो तेरा राहगुज़र या़द आया
फिर तेरे कूचे को जाता है ख़याल
दिले गुमगस्ता मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है
दस्त को देखके घर याद आया
मैने मजनू पे लड़पपन में ’असद"
संग उठाया कि सर याद आया
इनको लबपर लाये कौन ?
इतना गेहेरा जाये कौन ?
खुदको यु उलझाये कौन ?
जो तु समझा अपना था
वो लमहों का सपना था
हमने दिल को समझाया
अब हमको समझाये कौन ?
तेरी गली मे हो आये
होश वही खो जाये
दिख जाये अगर तू पलभर
मैखाने मे जाये कौन ?
गली गली मे फ़िरते है
कई ठोकरें खाते है
जब तुनेही ठुकराया हमे
अब हमको अपनाये कौन ?
संदीप खरे
3 comments:
Me yein parat lavkarach :)
फारच छान.
दिनेश.
http://www.sarvottam-marathi-vinod.blogspot.com
फ़िर उसी राहगुजर पर शायद
हम कभी मिल सके मगर शायद
जान पहचान से क्या होगा
फ़िर भी ऎ दोस्त गौर कर शायद
मुंतजिर जिनके हम रहे उनको
मिल गये और हमसफ़र शायद
जो भी बिछडे हॆ कब मिले हॆ फ़राज
फ़िर भी तू इंतिजार कर शायद
अहमद फ़राज
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