अभी थक के बैठ न हमसफर
न अभी से रात का ज़िक्र कर
अभी दिन है अपनीगिरफ़्त मे
अभी रोशनी है गुफाओं मे
- मंजूरा अख़्तर
तर मग "गिरफ़्त" वर
ख्बाबों के गिरफ़्त मै है "शाहिद"
जागा हुआ है न सो रहा है
- शाहिर कबीर
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http://feelingsandviewpoint.blogspot.com/ यांच्या कडुन.
फ़िर उसी राहगुजर पर शायद
हम कभी मिल सके मगर शायद
जान पहचान से क्या होगा
फ़िर भी ऎ दोस्त गौर कर शायद
मुंतजिर जिनके हम रहे उनको
मिल गये और हमसफ़र शायद
जो भी बिछडे हॆ कब मिले हॆ फ़राज
फ़िर भी तू इंतिजार कर शायद
अहमद फ़राज
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