Friday, January 23, 2009

राहगुजर, इंतजारी, बेकरारी, दरबदर,हमसफर, गिरफ़्त

अभी थक के बैठ न हमसफर
न अभी से रात का ज़िक्र कर

अभी दिन है अपनीगिरफ़्त मे
अभी रोशनी है गुफाओं मे

- मंजूरा अख़्तर

तर मग "गिरफ़्त" वर

ख्बाबों के गिरफ़्त मै है "शाहिद"
जागा हुआ है न सो रहा है

- शाहिर कबीर
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http://feelingsandviewpoint.blogspot.com/ यांच्या कडुन.

फ़िर उसी राहगुजर पर शायद
हम कभी मिल सके मगर शायद

जान पहचान से क्या होगा
फ़िर भी ऎ दोस्त गौर कर शायद

मुंतजिर जिनके हम रहे उनको
मिल गये और हमसफ़र शायद

जो भी बिछडे हॆ कब मिले हॆ फ़राज
फ़िर भी तू इंतिजार कर शायद

अहमद फ़राज

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