UNKE DUSHMAN HAI BAHUT AADMI AACHA HOGA
अब भी एक उम्र पे जीने का न अंदाज आया । ज़िंदगी छोड दे पीछा मेरा, मै बाज़ आया ।।
Monday, January 26, 2009
खंडहर कह रहे है , इमारत कभी बुलंद थी- देवगीरी
तुम्ही कितीही बलाढ्य, अभेद्य असाल पण कुठेतरी एखादी लहानशी फट असतेच असते.
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment