अब भी एक उम्र पे जीने का न अंदाज आया ।
ज़िंदगी छोड दे पीछा मेरा, मै बाज़ आया ।।
Sunday, November 15, 2009
फिर तेरा रेह गुज़र याद आया
वल्लाह तुझ से तर्के तअल्लुक़ के बाद भी अक्सर गुज़्रर गए है तेरे रेह गुज़र से हम । उक़्बा मे भी मिलेगी येही ज़िन्दगी "शकील" मरकर भी छुट न पाएंगे इस दर्देसर से हम ॥
1 comment:
khupch sundar ahe !
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