Wednesday, November 28, 2007

पुर्ण चंद्रमा गगन बिराजे



त्रिपुरी पोर्णिमेचा चांद.
तु चंदा शितल कहलाता फिर क्यु मेरे अंग जलाता !
फुलसा कोमल बाण मदनका शुल बनके तनमे क्यु चुभ जाता !

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