UNKE DUSHMAN HAI BAHUT AADMI AACHA HOGA
अब भी एक उम्र पे जीने का न अंदाज आया । ज़िंदगी छोड दे पीछा मेरा, मै बाज़ आया ।।
Wednesday, November 28, 2007
पुर्ण चंद्रमा गगन बिराजे
त्रिपुरी पोर्णिमेचा चांद.
तु चंदा शितल कहलाता फिर क्यु मेरे अंग जलाता !
फुलसा कोमल बाण मदनका शुल बनके तनमे क्यु चुभ जाता !
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