Tuesday, June 05, 2007

मल्का-ए-ग़ज़ल बेगम अख्तर याच्या खुल्या मैफिलीचे ध्वनीमुद्रण

बेगम अख्तर यांच्या हळव्या, ह्रुदयाला भीडणाऱ्या सुरांत डुबुन जायचे असेल, मैफिलीत पुन्हा भान हरपुन समरस व्हायचे असेल तर ०६/०६/०७ रोजी पु.ल.देशपांडे महाराष्ट कला अकादमीच्या "स्वरालय" उपक्रमात सायंकाळी ६.३० वाजता बेगम अख्तर याच्या खुल्या मैफिलीचे ध्वनीमुद्रण रविद्र नाट्य्मंदीर, प्रभादेवी येथे ऐकवले जाणार आहे , त्यास जाण्यावाचुन पर्याय नाही.

ईसी बात पर हो जाये

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वोही या’नी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
वो नए गिले वो शिकायते वो मजे मजे की हिकायते
वो हर एक बात पे रुठना तुम्हें याद हो कि ना याद हो
कभी हम में तुम मे भी चाह थी कभी हमसे तुमसे भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना तुम्हे याद हो की ना याद हो
सुनो जिक्र है कई साल का की किया जो आपने वादा था
सो निबाहने का तो जिक्र क्या तुम्हे याद हो कि ना याद हो
जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप केहते थे बाव़फा
मै वोही हूं "मूमिने’ मुबतिला तुम्हें याद हो कि न याद हो.

’मूमिन "

No comments: